न दीजे दावत-ए-इशरत गुलों के साए में कि दिल को होती है वहशत गुलों के साए में इसे तो ख़ाना-ए-वीराँ में चैन मिलता है सुकूँ न पाएगी हसरत गुलों के साए में ख़बर न थी कि यूँ आएगी अब के फ़स्ल-ए-गुल कि होगी ग़म की ज़रूरत गुलों के साए में उलझ के रह गया दामान-ए-शौक़ काँटों में न निकली जब कोई हसरत गुलों के साए में हर एक चोट उभर आई है तमन्ना की मिली है दर्द में लज़्ज़त गुलों के साए में न तोड़ा फूल कोई इस लिए कि ऐ 'साहिर' पली है मेरी मोहब्बत गुलों के साए में