न दिन को चैन न रातों को ख़्वाब आँखों में भर आ रहा है तिरे ग़म से आब आँखों में जिधर वो देखे उधर सफ़ की सफ़ उलट दे है भरी है शोख़ के ऐसी शराब आँखों में थमा न अश्क न नींद आई न पलक झपकी बसा है जब से वो ख़ाना-ख़राब आँखों में तुम्हारे हम तो क़दीमी ग़ुलाम बंदे हैं तुम्हें न चाहिए हम से हिजाब आँखों में क़सम है चश्म-ए-गुलाबी की तेरी ऐ गुल-रू कि याँ खिंचे है पड़ा नित गुलाब आँखों में ख़ुदा की शान जिन्हें बात भी न आती थी वो अब करे हैं सवाल-ओ-जवाब आँखों में शिताबी आन के महबूबो पगड़ियाँ रंग लो 'नज़ीर' लाया है भर कर शहाब आँखों में