न एहतिराम न दिल में अदब का होता है हमेशा मसअला नाम-ओ-नसब का होता है मक़ामी शय पे किसी को भी ए'तिबार नहीं हमारा मौलवी तक भी अरब का होता है ज़ियादा फ़र्क़ नहीं दहरियों में और हम में कोई न कोई अक़ीदा तो सब का होता है तलाश मुझ को भी रहती है इक बहाने की और इंतिज़ार उसे भी सबब का होता है दिलासा दे के यही चुप करा दिया गया हूँ कि जो भी फ़ैसला होता है रब का होता है ज़ियादा उम्र नहीं है किसी पतंगे की हमारा खेल फ़क़त एक शब का होता है तुम्हारी मर्ज़ी मोहब्बत कहो इसे कि हवस हमारे दिल में तो जज़्बा तलब का होता है हक़ीर चीज़ कभी ख़ाक में नहीं मिलती ये हाल सिर्फ़ किसी मुंतख़ब का होता है