न मुद्दई न कोई मुद्दआ' लगे है मुझे अजीब रंग की दिल में फ़ज़ा लगे है मुझे बुरा न मानो तो तुम से मैं एक बात कहूँ ये गुफ़्तुगू का तरीक़ा बुरा लगे है मुझे हज़ार जुर्म पे भी है मिरा करम-फ़रमा मैं क्या बताऊँ कि वो शोख़ क्या लगे है मुझे वो ख़ूब-रू भी है दिलबर भी और दिल-आरा भी मगर वो शोख़ कुछ इस से सिवा लगे है मुझे मैं छेड़ता हूँ उसे और वो कोसने दे है मगर ये कोसना जैसे दुआ लगे है मुझे जो पास आन के बैठे चमन सा खिल जाए चले तो जुम्बिश-ए-बाद-ए-सबा लगे है मुझे ख़िराम-ए-बाद-ए-सबा लाख गुल-निशाँ हो जाए किसी की चाल की झूटी अदा लगे है मुझे ये लाला-ओ-गुल-ओ-नर्गिस ये अब्र-ओ-बाद-ए-चमन किसी के जिस्म की उतरी क़बा लगे है मुझे तमाम आसरे बेकार-ए-महज़ हैं 'नक़वी' उसी का आसरा बस आसरा लगे है मुझे