ना जा यूँ रूठ कर दिलबर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा मिरी क़िस्मत के सौदा-गर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा मिरी हर साँस आहू की तरह मुझ से गुरेज़ाँ है नहीं सुनती कहा अक्सर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा भटकता ही गया वो तो हवस की बे-करानी में पुकारा लाख ऐ रहबर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा न लौट ऐ याद-ए-रफ़्ता मेरे अरमानों की नगरी में लगे माज़ी से मुझ को डर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा बड़ा नाज़ुक है ऐ मक्खी मगर मकड़े का जाला है नहीं ये रेशमी बिस्तर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा बिगड़ता खेल है बनता नहीं ये जल्द-बाज़ी से यही कहते हैं दानिश-वर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा थमा हरगिज़ न तूफ़ान-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहा गरचे ब-नाम-ए-अल्लहु-अकबर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा हिलाल-ए-ईद जब देखा उसे रुख़्सत की तब सूझी कहा मैं ने ख़ुदा से डर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा वो आने को हैं मलक-उल-मौत आहा तुझ को क्या उजलत ख़ुदारा यूँ न जल्दी कर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा मुझे लुत्फ़-ए-तजस्सुस में हैं भाए जब से वीराने कहे वो लौट आ अब घर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा ख़याल-ए-आबरू है मैं तुम्हें कब तक मनाऊँगा कहूँगा मैं न अब हम-सर ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा सुनी उस ने ना रहमाँ की न शैताँ की न यज़्दाँ की कहा सब ने उसे 'अनवर' ज़रा रुक जा ज़रा रुक जा