न कर ग़ुरूर अगर तू कमाल रखता है कि हर उरूज यहाँ पर ज़वाल रखता है ख़ुदा ही जाने मैं आई हूँ कैसे गुलशन में यहाँ तो ख़ार भी हुस्न-ओ-जमाल रखता है हर एक ज़ख़्म पे मेरे नमक छिड़कता है वो दोस्त मेरा बहुत ही ख़याल रखता है तमाम रिश्तों को तोड़ा नहीं अभी उस ने ख़फ़ा ख़फ़ा है मगर बोल-चाल रखता है लबों पे उस के शिकायत नहीं है कोई 'विला' मगर नज़र में हज़ारों सवाल रखता है