न कोई इश्क़ रहा और न मोहब्बत है तुम्हें साफ़ ज़ाहिर है कि अब मुझ से अदावत है तुम्हें मसअला हल नहीं होगा कभी ख़ामोशी से लब को जुम्बिश दो अगर कोई शिकायत है तुम्हें मैं तुम्हें छोड़ के जाऊँ ये नहीं हो सकता तुम मुझे छोड़ना चाहो तो इजाज़त है तुम्हें मुस्कुराते हुए चेहरे पे उदासी कैसी क्या मिरी जान मिरे साथ अज़िय्यत है तुम्हें तुम किसी एक के रहते नहीं सिक्के की तरह वक़्त के साथ बदल जाने की आदत है तुम्हें यूँ तमाशा न करो तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लो इतनी प्यारी अगर अज्दाद की इज़्ज़त है तुम्हें खेलते रहते हो मासूम दिलों से अक्सर खेलना दिल से कोई शौक़ नहीं लत है तुम्हें ज़िंदगी रंग से बे-रंग नज़र आएगी तितलियाँ क़ैद न करना ये नसीहत है तुम्हें मय हुई ख़त्म तो साक़ी ने कहा हज़रत-ए-क़ैस अश्क पी लीजिए गर प्यास की शिद्दत है तुम्हें मेरी तन्हाई मुझे देख के फ़रमाती है मेरे होते हुए और किस की ज़रूरत है तुम्हें