न मोम हूँ न संग हूँ मलंग हूँ मैं ख़ुद से ख़ुद की जंग हूँ मलंग हूँ तुम्हें जहान-ए-रंग-ओ-बू का शौक़ है मैं ज़िंदगी से तंग हूँ मलंग हूँ मिरे बदन पे इश्क़ के निशान हैं तिरी नज़र में नंग हूँ मलंग हूँ छलक पड़े हैं जाम जिस के साज़ से मैं ऐसी जल-तरंग हूँ मलंग हूँ न गर्द का न बारिशों का डर मुझे मैं ऐसा ख़ास रंग हूँ मलंग हूँ तिरे बदन के मो'जिज़ों को देख कर मैं अक़्ल वाला दंग हूँ मलंग हूँ न रोक मुझ को रक़्स से मैं कह चुका मलंग हूँ मलंग हूँ मलंग हूँ