नई ज़मीन अता हो नया मकाँ भी बने हमारे हिज्र का कुछ मुनफ़रिद निशाँ भी बने चुभो लिया तिरी चूड़ी का शीशा आँखों में हमारी आँख का नक़्शा लहूलुहाँ भी बने तमाम हिज्र-ज़दा लोग मेरे साथ चलें फ़िराक़-ए-यार के मारों का कारवाँ भी बने कोई सिला नहीं पाया तुम्हारी चाहत में तुम्हारे वास्ते लोगों में बद-ज़बाँ भी बने बहार आई है फूलों से लद गईं शाख़ें हमारे नाम का इक ग़ुंचा-ए-दहाँ भी बने उगा रहा हूँ नए पेड़ घर के आँगन में कोई तो हो जो मिरे घर का साएबाँ भी बने हुनर न इल्म न अक़्ल-ओ-शुऊर था 'फ़ैसल' कुछ ऐसे लोग यहाँ मीर-ए-कारवाँ भी बने