अरसा-ए-ख़्वाब से उठ हल्क़ा-ए-ता'बीर में आ गुम-शुदा रो'ब-ए-जुनूँ कासा-ए-तश्हीर में आ इंतिहा मब्दा-ए-हस्ती की फ़ना है या बक़ा ग़ौर से देखते हैं बख़्त की तस्वीर में आ ऐ ख़राबात-ए-तनफ़्फ़ुर के परेशान मकीं गर सुकूँ चाहता है इश्क़ की ता'मीर में आ हिद्दत-ए-दीद निगाहों की इबारत से निकल और यख़-बस्ता मिरे रौज़न-ए-तहरीर में आ चढ़ के फिर सर पे मिरे बोले असीरी का ख़ुमार क़ैद कर ले मुझे फिर ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर में आ अहद-ए-माज़ी के ख़ुश-आइंद भटकते लम्हे वक़्त आ पहूँचा है अब हाल की जागीर में आ जल-बुझे गर्मी-ए-अनफ़ास से दोनों का वजूद घोलने ख़ुद को मिरे क़ुर्ब की तासीर में आ लज़्ज़त-ए-वस्ल को हासिल हो ज़मीं की जन्नत मुझ से मिलने के लिए वादी-ए-कश्मीर में आ ज़ेर-ए-पा रख के सभी अक्स-ए-फ़ुसून-ए-तक़दीर फिर जवाँ होने को गहवारा-ए-तदबीर में आ ऐ ख़िज़ाँ-ज़ाद अगर चाहता है रिज़्क़-ए-बहार दामन-ए-ज़ीस्त लिए रौज़ा-ए-शब्बीर में आ आजिज़ी कहने लगी गर हो बुलंदी की तलब दिल झुका दाइरा-ए-ना'रा-ए-तकबीर में आ दिया उगते हुए सूरज ने ये पैग़ाम 'नदीम' इन अँधेरों से निकल ख़ेमा-ए-तनवीर में आ