उन्वान हज़ारों हैं ग़ज़ल कोई नहीं है झीलों के मनाज़िर में कँवल कोई नहीं है ऐ काश कोई देखे मिरे ज़ब्त का आलम बे-कल हूँ मगर माथे पे बल कोई नहीं है हर चंद के हम लोग हैं फ़िरदौस के ख़ालिक़ दुनिया में मगर अपना महल कोई नहीं है हक़ बात कहो जब भी कहो जान-ए-तमन्ना ये बात है वो जिस का बदल कोई नहीं है हालात की दलदल में धँसी जाती है 'मानी' अब साकित-ओ-जामिद है अमल कोई नहीं है