नफ़रतों का निसाब पढ़ पढ़ के हो गया दिल ख़राब पढ़ पढ़ के इक सुख़नवर ने आज फिर बरपा कर दिया इंक़लाब पढ़ पढ़ के ज़िंदगी का शुऊ'र आया नहीं क्या मिला है जनाब पढ़ पढ़ के दीन-ओ-दुनिया को मैं ने पहचाना आसमानी किताब पढ़ पढ़ के रूह मेरी चमक गई 'अहमद' इश्क़-ओ-उल्फ़त का बाब पढ़ पढ़ के