नज़र किसी से मिली है शायद तभी ग़ज़ल इक हुई है शायद मैं जिस गली में भटक गया था यही वो यारो गली है शायद फ़लक से उतरे हैं चाँद तारे फिर उन की महफ़िल सजी है शायद हवा की ख़ुशबू बता रही है ये उन को छूकर चली है शायद मैं ग़ैर के ऐब गिन रहा हूँ मिरे ही अंदर कमी है शायद धुआँ बदन से उठा है 'अहमद' लो आग दिल में लगी है शायद