नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर नज़र आते हैं मीना-ए-मय-ए-गुल-रंग सीने पर नहीं रखे हैं तू ने हर तरह के फूल अंगिया में जवाहर ये नज़र आते हैं रंगा-रंग सीने पर नहीं लौह-ए-मज़ार-ए-रफ़्तगान-ए-शहर-ए-ख़ामोशाँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त का रख कर सो रहे हैं संग सीने पर नुमूद जिस्म का उस सीम-तन को है ख़याल इतना कि ख़ुश रहता है ख़य्यातों से कपड़े तंग सीने पर ख़ुदा के फ़ज़्ल से शौक़-ए-लुग़त है 'मेहर' को इतना धरे रहते हैं पहरों नुस्ख़ा-ए-फ़रसंग सीने पर