नहीं है कोई चमन क़ल्ब-ए-दाग़-दार के बाद यहाँ ख़िज़ाँ नहीं आती कभी बहार के बाद बहार पर था चमन था चमन में जोश-ए-बहार बहार के ये करिश्मे थे और बहार के बाद सुकूँ-बदोश घड़ी दो ही गुज़री हैं मुझ पर इक इंतिज़ार से पहले इक इंतिज़ार के बाद सता ले रिंदों को वाइज़ सता ले जी भर के रहेगा तू न कहीं का ख़ुदा की मार के बाद कुछ और जोश में लाता है उस की रहमत को गुनाहगार का आना गुनाहगार के बाद लताफ़तों ने भी ज़ख़्मों पे मेरे छिड़का नमक बताया रंग हर इक गुल ने मुझ को ख़ार के बाद छुपाए बैठे थे रुस्वाइयों में राज़-ए-ख़ुदी हम आए सामने 'ख़िज़्र' इम्तिहान-ए-दार के बाद