नहीं कुछ और तो अपने क़रीं पहुँच सकते जहाँ हमारी पहुँच है वहीं पहुँच सकते किरन से तेज़ है रफ़्तार बे-ख़याली की हमारी गर्द को तारे नहीं पहुँच सकते हमें कहीं न पहुँचने दिया तसाहुल ने बदन न होता तो शायद कहीं पहुँच सकते तनाज़ुरात पे रोते ज़ियादा बोलते कम हमारी चुप को अगर नुक्ता-चीं पहुँच सकते उमुक़ में इतनी तो होती उछाल की क़ुव्वत कि सत्ह तक भी तिरे तह-नशीं पहुँच सकते न ख़ाक फांकते वहमों की बंद गलियों में कभी जो तुम सर-ए-बाब-ए-यक़ीं पहुँच सकते तलाज़ुमात से हो कर न जाना पड़ता हमें हम अपनी रम्ज़ को अपने तईं पहुँच सकते निकल न पाते अगर अक्स-आफ़रीनी से तो अस्ल तक न शबीह-आफ़रीं पहुँच सकते वहाँ के शहर-ए-अजाइब में घूमते मिल कर नशेबी ज़ीने से ज़ेर-ए-ज़मीं पहुँच सकते पहुँच में होती रसाई भी ना-रसाई भी कहीं पहुँच नहीं सकते कहीं पहुँच सकते तो फिर ये सारी सियाहत फ़ुज़ूल है 'शाहिद' अगर हम अपनी फ़ज़ा तक नहीं पहुँच सकते