नहीं मालूम क्यों न्यारा लगे है सितम-गर है मगर प्यारा लगे है नज़र क़ातिल अदाएँ जान-लेवा बदूँ हथियार हत्त्यारा लगे है ग़ज़ब में वो जलाल-ए-मेहर-ए-ताबाँ तबस्सुम में वो मह-पारा लगे है जिगर थामे खड़ा है रास्ते में ये कोई दर्द का मारा लगे है बहुत उमीद ने धोके दिए हैं बड़ी मक्कार अय्यारा लगे है जमाल-आराई का है अब ये आलम है सिन सत्तर का अठारह लगे है ख़ुदा सब का ख़ुदा है शैख़ साहब वही मेरा जो तुमहारा लगे है 'अदू क्यों आज है महफ़िल से ग़ाएब हुआ नौ और दो ग्यारह लगे है सफ़र कम मुख़्तसर है ज़िंदगी का कि 'अर्सा 'उम्र का सारा लगे है हवा में मह्ल सब क्यों हैं बनाते न पत्थर ईंट और गारा लगे है हुआ एहसास-ए-तन्हाई ज़ियादा बजे हैं रात के बारा लगे है वफ़ूर-ए-आरज़ू-ए-वस्ल 'शाहिद' फ़साद-ए-नफ़्स का मारा लगे है