नई जफ़ा का मुझे अब तो कोई बाब न दे मैं जिस को पढ़ के बहक जाऊँ वो किताब न दे ख़ुदा बना तो लिया मैं ने एक पत्थर को सवाल कैसे करूँ जब कि वो जवाब न दे उगा दे दर्द का सूरज हमारे घर में मगर जला दे रौशनी जिस की वो माहताब न दे चमन चमन में वो फूलों का बादशाह सही मगर जो रंग मिरा ज़ख़्म दे गुलाब न दे चुभे जो ख़ार की मानिंद हर-नफ़स 'परवेज़' सता ले मुझ को मगर कोई ऐसा ख़्वाब न दे