ज़िंदगी की राहों में तुम हो जल्वा-गर तन्हा ज़ुल्मतें हैं हर जानिब शम-ए-रहगुज़र तन्हा शम्अ की तरह हम ने जल के ता-सहर तन्हा ज़ीस्त के अँधेरों में तय किया सफ़र तन्हा दिन गुज़ार देता हूँ हँस के बज़्म-ए-रिंदाँ में ज़िंदगी पे रोता हूँ शब को जाग कर तन्हा साथ सब निभाते हैं राह में मसर्रत की तय सभी को करनी है ग़म की रहगुज़र तन्हा किस क़दर परेशाँ हैं अहल-ए-इश्क़ दुनिया में मुझ पे रश्क करते हैं मुझ को देख कर तन्हा राज़-ए-इश्क़ दुनिया में कब किसी ने समझा है एक तुम नहीं 'यकता' उस से बे-ख़बर तन्हा