नैरंगी-ए-बहार-ए-जुनूँ हम भी देख लें क्या गुल खिलाए गिर्या-ए-शबनम भी देख लें सुनते हैं वो है दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही मौज-ए-मय-ए-नशात का आलम भी देख लें ले सर उठा रहे हैं तिरे आस्ताँ से हम होता है कौन इश्क़ का महरम भी देख लें शायद ग़म-ए-जहाँ के असीरों को रास आए आशुफ़्तगी-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म भी देख लें पाला पड़ा है हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल-शिआर से ज़ब्त-ए-जुनून-ए-इश्क़ का दम-ख़म भी देख लें आवारगी-ए-फ़स्ल-ए-चमन चार दिन सही कुछ इर्तिबात-ए-शो'ला-ओ-शबनम भी देख लें तेरे ख़याल ही से न हों राहतें तमाम तुझ को भुला के इश्क़ का आलम भी देख लें मुद्दत हुई कि आँख से टपका नहीं लहू किस हाल में हैं अहल-ए-वफ़ा हम भी देख लें वो जिन को ए'तिमाद-ए-ख़ुलूस-ए-वफ़ा नहीं फ़ुर्क़त में चश्म-ए-नाज़ को पुर-नम भी देख लें