पूरब देस की यादें लाया फिर मौसम का तीखा-पन मुझ से पहरों उन्स करे है तन्हाई का सूना-पन दिल के रंग महल में जैसे बरसों कोई न झाँका हो तस्वीरों की बे-नूर आँखें शीशा-शीशा धुँदला-पन कितनी बार लहू रोया है कितनी बार जले हैं चराग़ कितने ग़मों की आँच में निखरा दर्द का मीठा मीठा-पन हम ठहरे दरवेश जनम से प्यार किया तो आ बैठे हम से क्या ये तीखी नज़रें हम से क्या बेगाना-पन अनजाने लोगों तक पहुँचा ज़िक्र तुम्हारी चाहत का गली गली मशहूर हुआ है 'माहिर' का दीवाना-पन