नज़र में इक जहाँ है और तमन्ना का जहाँ वो भी जो तैर-ए-फ़िक्र है रहता है हर-दम पर-फ़िशाँ वो भी ज़रा ठहरो कि पढ़ लूँ क्या लिखा मौसम की बारिश ने मिरी दीवार पर लिखती रही है दास्ताँ वो भी मोहब्बत में दिलों पर जाने कब ये सानेहा गुज़रा जगह शक ने बना ली और हमारे दरमियाँ वो भी सुनो ऐ रफ़्तगाँ रहता नहीं कुछ फ़ासला इतना बस इक दीवार बाक़ी है मिरी दीवार-ए-जाँ वो भी जहाँ पर ना-रसाई ही रियाज़त का सिला ठहरे हमें दिल ने सिखा रक्खा है इक कार-ए-ज़ियाँ वो भी नए इम्कान की जानिब सफ़र में जब तरद्दुद हो सदा कानों में आती है सदा-ए-कुन-फ़काँ वो भी किसी दिलदार साअत में किसी महबूब लहजे का दिखाती है तमाशा और मिरी उम्र-ए-रवाँ वो भी