नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं बताओ यूँ भी कहीं दिल मिलाए जाते हैं हुजूम-ए-जल्वा-ए-रंगीं का मुद्दआ' मा'लूम हमारी ताब-ए-नज़र आज़माए जाते हैं हिजाब हो मगर ऐसा भी क्या हिजाब आख़िर झलक दिखाते नहीं मुँह छुपाए जाते हैं हुदूद-ए-कूचा-ए-जानाँ में आ गए शायद क़दम क़दम पे क़दम डगमगाए जाते हैं ये किस का ज़िक्र है ऐ 'ताज' लब पे शाम-ओ-सहर ये किस कि याद में आँसू बहाए जाते हैं