नक़ाब चेहरे पे बातें लुआब-दार करे वो रहनुमा है सियासत का कारोबार करे ये सिर्फ़ ख़्वाबों किताबों की बात लगती है कि इक ग़रीब की इमदाद माल-दार करे नए ज़माने का रहज़न नया सलीक़ा है वो लौटता है मगर पहले होशियार करे चराग़ ले के भी ढूँढेंगे तो मिलेगी नहीं जहाँ में एक भी हस्ती जो माँ सा प्यार करे हवा के ज़ोर से ही कश्तियाँ नहीं चलतीं कि नाख़ुदा भी ख़ुदा से ज़रा गुहार करे वो गुल-बदन है मुकम्मल बहार से बढ़ कर बस उस का ज़िक्र ही मौसम को ख़ुश-गवार करे न जाने कौन सी बस्ती का तू है बाशिंदा तुझे 'दिनेश' कोई ग़म न बे-क़रार करे