समाया जब से है वो गुल-एज़ार आँखों में हर एक गुल नज़र आता है ख़ार आँखों में बताओ किस का हुआ जाम-ए-आरज़ू लबरेज़ कि नश्शे का है अभी तक ख़ुमार आँखों में ये किस के दीद की मुश्ताक़ है दम-ए-आख़िर कि मेरी रूह को है इंतिज़ार आँखों में जो चाहते हो असा टेक कर उठे बीमार लगाओ सुर्मा-ए-दुम्बाला-दार आँखों में वो रश्क-ए-गुल जो नहीं है हमारे पहलू में ब-रंग-ए-ख़ार से फ़स्ल-ए-बहार आँखों में तुम्हारी दीद के सौदे में आ गया सौ बार तड़प तड़प के दिल-ए-बे-क़रार आँखों में इसी सबब से तो खुलती नहीं है आँख मिरी फिरा ही करती है तस्वीर-ए-यार आँखों में मैं देखता नहीं बे-वजह सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ेज़ कभी है सब्ज़ा-ए-ख़त की बहार आँखों में मिसाल-ए-मर्दुमक-ए-चश्म है ये मद्द-ए-नज़र रहें हुज़ूर ही लैल-ओ-नहार आँखों में दुआ ये रहती है 'वहबी' कि उन के तलवे का लगाऊँ सुरमे की सूरत ग़ुबार आँखों में