नालाँ नहीं कुछ तिरे सितम पर ऐसी ही बनी है अपने दम पर हर दाग़ पर एक ज़ख़्म आया क़ातिल का ये सिक्का है दिरम पर लो अहल-ए-जहाँ नवेद-ए-फ़रहत माइल है दिल अपना अख़्ज़-ए-ग़म पर कैसी ही सदा मुहीब आ जाए नाले का गुमाँ करें वो हम पर 'सालिक' से लिया है तुम ने दिल मुफ़्त याँ और भी बेचते हैं कम पर