रखो वो शेवा न मद्द-ए-नज़र नज़र में रहे कि जिस से राज़-ए-मोहब्बत बशर बशर में रहे चमन जो बन के तिरा रहगुज़र गुज़र में रहे तो नख़्ल-ए-तूर का जल्वा शजर शजर में रहे अज़ीज़ तर है अगर हो सरिश्क में तासीर लतीफ़-तर है जो आब-ए-गुहर गुहर में रहे उधर तमाम किया आसमाँ ने अपना काम इधर फँसे हुए अहल-ए-हुनर हुनर में रहे वुफ़ूर-ए-ग़म से ये जी में है रोइए इस तरह न दिल में हाल न ख़ून-ए-जिगर जिगर में रहे बुरी ख़बर हो तो इस तरह नामा-बर कहना कि सिद्क़-ओ-किज़्ब का शक बे-ख़बर ख़बर में रहे समझ के इश्क़ कर ऐ दिल कि क्या नहीं मालूम जो सोचते नहीं नफ़-ओ-ज़रर ज़रर में रहे उठाओ क़ब्र में भी लज़्ज़त-ए-ख़लिश ता-हश्र ख़ुदा करे कि ख़दंग-ए-जिगर जिगर में रहे वफ़ा हमारी सितम आप के कुछ ऐसे हों कि मुद्दतों यही चर्चा बशर बशर में रहे शब-ए-फ़िराक़ मिली तीरा-रोज़गारी में सहर गुज़र गई और हम सहर में रहे हम उन की बज़्म में बैठे रहे व-लेकिन यूँ कि जैसे रहरव-ए-राह-ए-ख़तर ख़तर में रहे खिचे जो सीने से नाला तो चाहिए ऐ दिल मिसाल-ए-मा'नी-ए-लफ़्ज़-ए-असर असर में रहे शब-ए-विसाल की यारब न रौशनी कम हो वो नूर-ए-आरिज़-ए-रश्क-ए-क़मर क़मर में रहे तमीज़ ग़म को दिया था फ़लक ने ऐश इतना कि जैसे जल्वा-ए-रंग-ए-शरर शरर में रहे हमारे क़त्ल को लो नाज़ुकी से पहले सलाह अभी तो ख़ंजर-ए-ज़ेब-ए-कमर कमर में रहे अदा-ए-शर्म में लाखों इशारे हैं 'सालिक' झुकी हुई ये किसी की नज़र नज़र में रहे