नक़्श-ए-हस्ती मिटा भी देता है हादिसा हौसला भी देता है सब वफ़ादार तो नहीं होते यार कोई दग़ा भी देता है वक़्त करता है चश्म-पोशी भी हाथ में आइना भी देता है आँख में चुभता है ग़ुबार मगर क़ाफ़िले का पता भी देता है आज के दौर में हुआ साबित खोटा सिक्का सदा भी देता है