राख माज़ी की कुरेदोगे तो क्या पाओगे कोई चिंगारी निकल आई तो जल जाओगे एक क़तरा भी अगर हो तो बचा कर रखना ख़ून का क़हत पड़ेगा तो कहाँ जाओगे हो लगी मग़रिबी तहज़ीब की मेहंदी जिस में कैसे उस हाथ से तलवार उठा पाओगे जिस से वाबस्ता है अज्दाद की अज़्मत का भरम उस हवेली को जो बेचोगे तो पछताओगे अहद-ए-हाज़िर में वफ़ाओं का नतीजा क्या है तुम जो 'आलम' से मिलोगे तो समझ जाओगे