नक़्श-ए-क़दम के साथ वो रस्ते मिटा के रह गईं अंधे सफ़र को आँधियाँ कितना बढ़ा के रह गईं सब के वजूद के लिए कुन की सदा के आते ही अर्ज़-ओ-समा की वुसअ'तें उस में समा के रह गईं हाथों से काँपते रहे सूखे हुए सना के फूल पेश-ए-असर दुआएँ भी आँखें झुका के रह गईं एक बरस तो भीग ले सहन भी छत के साथ साथ ऐसी ही एक दो ख़्वाहिशें दिल को दुखा के रह गईं पुर्सिश-ए-हाल पर तिरे लब तो ख़मोश ही रहे आँखों को जाने क्या हुआ आँसू गिरा के रह गईं कितनी दुआएँ माँगी थीं हम ने सहर के वास्ते उस की शुआएँ क्या करें आँखें बुझा के रह गईं देख के बे-समर शजर बाग़ में 'राज' इस बरस दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं