शहर में रुक सा गया कार-ए-जहाँ तेरे बाद क्या बताऊँ कि गया कौन कहाँ तेरे बाद चीख़ते फिरते हैं सन्नाटे खुली सड़कों पर न रहा कोई भी आबाद मकाँ तेरे बाद आँख से आठ पहर अश्क मिरे बहते हैं दिल से उठने लगा रह रह के धुआँ तेरे बाद हर तरफ़ बात तिरी याद तिरी फ़िक्र तिरी जाग उट्ठे तिरी फ़ुर्क़त के निशाँ तेरे बाद पूछना चाहूँगा गर तू जो कहीं मिल जाए बे-ज़बाँ हो गए क्यों अहल-ए-ज़बाँ तेरे बाद हसरतें दिल में सुलगती हैं मिरे आख़िर-ए-शब अपने होने का भी बाक़ी न गुमाँ तेरे बाद मुब्तला 'राज' तो है दुख में तेरी फ़ुर्क़त के शहर में क्यों न रहा अम्न-ओ-अमाँ तेरे बाद