शक्ल इज़्ज़त-मआब की सी है दिल में भट्टी शराब की सी है यूँ निशाँ है जबीं पे सज्दे का टिकिया शामी कबाब की सी है रेडियो पर सुनी जो नज़्म कहा शाएर-ए-इंक़लाब की सी है बोला कोई गधा कहा आवाज़ उसी ख़ाना-ख़राब की सी है अब हसीनों की शक्ल मेकप से सिनेमा की किताब की सी है आप के मेरे कोई है रिश्ता बात जैसे हिजाब की सी है उठ गए जो अदीब उन की मिसाल आसमानी किताब की सी है अहल-ए-फ़न ने सुनी हज़ल तो कहा ये तो 'ग़ालिब' नवाब की सी है 'नावक' उर्दू ज़बान की हालत आज गूँगे के ख़्वाब की सी है