नशा-ए-इश्क़ में सरशार हैं किस के उस के मुंतज़िर आने के हर बार हैं किस के उस के चारागर चारागरी तेरी न काम आएगी चश्म-ए-बीमार के बीमार हैं किस के उस के काम दोज़ख़ से नहीं और नहीं जन्नत से ग़रज़ हाँ मगर तालिब-ए-दीदार हैं किस के उस के वो तो पर्दा में है सूरत नहीं दिखलाते हैं सैंकड़ों फिरते ख़रीदार हैं किस के उस के कुछ तड़पते हैं सिसकते हैं कई हैं बेहोश सब ये जाँबाज़ तलबगार हैं किस के उस के मुब्तला जुर्म में हम हैं तो तुझे क्या ज़ाहिद हम ख़तावार गुनहगार हैं किस के उस के गो गुनहगार हैं रहमत का भरोसा कर के अब तो जाते सर-ए-दरबार हैं किस के उस के क़ैद-ए-मज़हब से जो छूटे गए आज़ाद ऐ शैख़ दाम-ए-उल्फ़त में गिरफ़्तार हैं किस के उस के अपनी क़िस्मत का गिला कीजिए किस से 'बे-गुन' दूर-अज़ साया-ए-दीवार हैं किस के उस के