नसीब में जिस के जो लिखा था वो तेरी महफ़िल में काम आया किसी के हिस्से में प्यास आई किसी के हिस्से में जाम आया मैं इक फ़साना हूँ बेकसी का ये हाल है मेरी ज़िंदगी का न हुस्न ही मुझ को रास आया न इश्क़ ही मेरे काम आया बदल गईं तेरी मंज़िलें भी बिछड़ गया मैं भी कारवाँ से तिरी मोहब्बत के रास्ते में न जाने ये क्या मक़ाम आया तुझे भुलाने कि कोशिशें भी तमाम नाकाम हो गई हैं किसी ने ज़िक्र-ए-वफ़ा किया जब ज़बाँ पे तेरा ही नाम आया