नट-खट चंचल मंचला बाँका वो चित-चोर जिस के हाथों जा पड़ी मेरी जीवन डोर मौसम अच्छा है इसे और अच्छा कर यार बोले चेहरा देख कर अभी नहीं आसार सो जा सोने दे मुझे मत कर नींद ख़राब दाने अपनी गाँठ के बिना भूक मत चाब अभी मिलन को साजना दिन ना बीते चार सीने पर रख कर शिला दो दिन और गुज़ार वो निर्लज्ज निर्दयी मुझे समझे धोबी घाट हाथी नाचे खाट पे खाट पड़े चौपाट