नौमीद-ए-करम हो कर मायूस-ए-दुआ हो कर हम बैठ गए आख़िर राज़ी-ब-रज़ा हो कर इन बंद गुफाओं से क्यों हम को लगाओ है जिन बंद गुफाओं से आए हैं रिहा हो कर छूते ही मिरा चेहरा नम कर गई आँखों को यादों के समुंदर से आई थी हवा हो कर क्यों टूटते रिश्तों पर अश्क आ गए आँखों में होने दो अगर कोई जाता है ख़फ़ा हो कर तू ने मुझे ऐसे भी दिन-रात दिखाए हैं रह जाती है जब दुनिया बस एक ख़ला हो कर अच्छे रहे जो पल पल मौसम की तरह बदले क्या पा लिया हम ने भी पाबंद-ए-वफ़ा हो कर दुश्मन पे 'शबाब' अपने क्यों मुझ को न रहम आए गाली मुझे दुश्मन की लगती है दुआ हो कर