नज़्अ' का आलम है चारा-साज़ घबराने लगे अब तिरे बीमार-ए-ग़म को ग़श पे ग़श आने लगे क्या ज़मीं अब आसमाँ वाले भी थर्राने लगे मेरे नाले आज शायद अर्श तक जाने लगे आलम-ए-वहशत में काम आ ही गई दीवानगी सुन के हाल-ए-ज़ार उन के भी पयाम आने लगे एक दिन वो था कि उन को दिल से समझाता था मैं एक दिन ये है कि अब वो मुझ को समझाने लगे नाज़ से अंगड़ाइयाँ लेने लगे वो देख कर वो मिरे एहसास के शो'लों को भड़काने लगे जब उठा 'जौहर' जहाँ से कोई नाकाम-ए-हयात फूल से चेहरे हसीनों के भी मुरझाने लगे