नज़र निशाने पे थी तीर भी कमान में था हवा चलेगी अचानक कहाँ गुमान में था मुझे भी करना वही था जो कर दिया उस ने पे एक ख़ौफ़-ए-ख़ुदा था जो दरमियान में था ज़मीं का बोया भी क्या आसमाँ पे कटना था किए धरे का नतीजा इसी जहान में था हज़ार रंग थे जो दश्त में भटकते थे और एक लम्स बड़ी देर से मचान में था मैं एक उम्र फ़लक पर नज़र जमाए रहा पलट के देखा तो वो मेरे ही मकान में था सो ख़ानदान की सारी दुआएँ मेरी थीं दुआओं के लिए बस मैं ही ख़ानदान में था हमारी उम्र थी 'साबिर' धुआँ उड़ाने की ख़बर नहीं थी कि हासिल तो ख़ाक-दान में था