रहेगी शोर-ए-नवाई हयात में कब तक अना की ज़ो'म-गरी बात बात में कब तक निकल के देख हिसार-ए-हद-ए-तअ'य्युन से यूँही रहेगा असीर अपनी ज़ात में कब तक हक़ीक़तन जो न कुछ भी सुनें सुनाएँगे उड़ाएँगे वो हमें बात बात में कब तक यक़ीं न आएगा कब तक उन्हें मोहब्बत का रहेगा राब्ता ना-मुम्किनात में कब तक दिखाए जाएँगे मंज़र हमें क़यामत के ख़याल-ओ-ख़्वाब यूँही रात रात में कब तक कहाँ है किस के लिए है ख़ुशी बरा-ए-ख़ुशी ग़म-ए-हयात रहेगा हयात में कब तक सुकून-ए-क़ल्ब का पहलू 'रिशी' बहर-पहलू नज़र न आएगा तस्ख़ीर-ए-ज़ात में कब तक