निभाना गर हुआ मुश्किल मरासिम तोड़ना अच्छा बहाने चल नहीं सकते वहाँ सच बोलना अच्छा उमीद-ए-क़त्ल कर के यूँ तुम्हें क्या मिल गया आख़िर कभी एहसास को थोड़ा जगा कर सोचना अच्छा शिकायत कुछ नहीं मुझ को सभी ख़ुशियाँ तुम्हारी हैं मिरे हिस्से के सारे दर्द मुझ को सौंपना अच्छा पहुँच कर मंज़िलों पर भी अगर हासिल नहीं कुछ भी समझ में ये जो आ जाए सफ़र को रोकना अच्छा उड़ानों की मशक़्क़त से ज़रा पहले सुनो 'ज़ाकिर' बुलंदी नाप कर ही तो परों को खोलना अच्छा