निगाह-ए-अव्वलीं की दिलसितानी याद आती है किसी ना-मेहरबाँ की मेहरबानी याद आती है क़रीब-ए-शाख़-ए-गुल होती है जब दसताँ-सरा बुलबुल हमें भी भूली-बिसरी इक कहानी याद आती है दिल-ए-नाशादमाँ को और भी नाशाद करने को दिल-ए-नाशादमाँ की शादमानी याद आती है जवानी और बू-ए-गुल में या रब क्या तअ'ल्लुक़ था कि बू-ए-गुल से पीरी में जवानी याद आती है ग़ज़ल अब ख़त्म हो जाती है अपनी पाँच शे'रों पर जवानी और तबीअत की रवानी याद आती है