निगार-ए-ज़िंदगानी में सहारे लौट कर आए फ़सील-शाम पर रौशन सितारे लौट कर आए तुम्हारा साथ मेरी सल्तनत का इक ख़ज़ाना था तुम्हारे छोड़ जाने पर ख़सारे लौट कर आए जो ढलती उम्र की हद पर नया अह्द-ए-वफ़ा बाँधा ख़िज़ाओं से बहारों के नज़ारे लौट कर आए वो जिन को प्यार था अपने वतन के ज़र्रे ज़र्रे से वो माँ की झोलियों में कब दुलारे लौट कर आए न तोड़ा रिश्ता-ए-उम्मीद तुंद-ओ-तेज़ मौजों में भँवर में नाख़ुदा बन कर किनारे लौट कर आए चराग़-ए-नीम-जाँ अब लड़ रहा है आख़िरी पल से ग़नीमत है मोहब्बत के इशारे लौट कर आए मैं 'ताबिश' मुद्दतों से बर्फ़ की बस्ती का बासी हूँ मैं ख़ुश हूँ मेरी जानिब जो शरारे लौट कर आए