निकल आया वो घबरा कर दिल उस का इस क़दर धड़का

निकल आया वो घबरा कर दिल उस का इस क़दर धड़का
सदा बिजली की दी नाले ने जब मुँह से मिरे कड़का

ठहर कुछ दिन में दस्त-अंदाज़ियों का वक़्त आएगा
निहाल-ए-नौ-दमीदा हूँ भरोसा क्या मिरी जड़ का

हमेशा ख़ाक-ओ-ख़ूँ में मुझ को बेताबी बिठाया की
ब-शक्ल-ए-मुर्ग़-ए-बिस्मिल कौन से पहलू नहीं फड़का

ख़याल-ए-आरिज़-ए-रौशन में सुब्ह-ओ-शाम यकसाँ है
यहाँ आठों-पहर पेश-ए-नज़र है नूर का तड़का

ये सच है वक़्त पर बे-रौनक़ी भी काम आती है
निहाल-ए-ख़ुश्क को खटका नहीं होता है पतझड़ का

न क्यूँ पिन्हाँ रखूँ दामन में उस को कम-निगाहों से
समझता हूँ मैं अपना अश्क-ए-गुलगूँ ला'ल गूदड़ का

गुज़रता है सलामत वाक़िफ़-ए-अंजाम मतलब से
नहीं रस्ता खटकता आँख में दहक़ाँ की बीहड़ का

लिए हैं गुल के बोसे आज किस चोरी से बुलबुल ने
पड़ा सोया किया गुलचीं कोई पत्ता नहीं खड़का

छुपाया पर्दा-ए-फ़ानूस बन कर जिस्म-ए-उर्यां ने
दरून-ए-उस्तुख़्वाँ से जिस घड़ी शो'ला कोई भड़का

ब-जुज़ ईमा कलाम-ए-इश्क़ मतलब से मुअर्रा है
किसी पर राज़ खुल सकता नहीं मज्ज़ूब की बड़ का

फ़साहत के ख़िलाफ़ आए नज़र सब क़ाफ़िए हम को
'नसीम' ऐसी ज़मीं पर कीजिए इतलाक़ बीहड़ का


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