निकहत-ए-गुल से बू-ए-यार आए अब के यूँ फ़स्ल-ए-नौ-बहार आए हम को मिलता भी क्या कि ख़ुद हम ही ले के दामान तार-तार आए हम ख़ताओं का कर चुके इक़रार अब ये क्यों आप शर्मसार आए आए दीवाना-वार बाद-ए-सबा होश उड़ाती हुई बहार आए अहल-ए-वहशत की बज़्म में 'काज़िम' बन के दीवाने होशियार आए