नुमायाँ हैं मिरी बर्बादियों के कुछ निशाँ अब तक पड़ी है सहन-ए-गुलशन में ये ख़ाक-ए-आशियाँ अब तक मआ'ज़-अल्लाह ये मुझ बेकस पे ज़ोर-ए-आसमाँ अब तक नशेमन क्या मिला गिरती हैं दिल पर बिजलियाँ अब तक दिया था दर्द तुम ने वो भी ना-काफ़ी हुआ मुझ को रही है दर्द-ओ-ग़म की ना-मुकम्मल दास्ताँ अब तक मोहब्बत ख़त्म होने पर भी बाक़ी हैं निशाँ अब तक मिरे सीने में है आबाद ये दर्द-ए-निहाँ अब तक चमन को छोड़ कर जाऊँ कहाँ मैं ऐ चमन वालो वही दुश्मन हुआ मेरा रहा जो मेहरबाँ अब तक दम-ए-आख़िर न आए वो अयादत के लिए मेरी तअ'ज्जुब है दिल-ए-मुज़्तर कि हैं वो बद-गुमाँ अब तक तुझे नीचा दिखाता मैं कभी का नाला-ए-दिल से सितम सहता रहा लेकिन तिरे ऐ आसमाँ अब तक तिरा नाम-ए-मुबारक है ज़बाँ पर मरने वाले की तुझे भूला नहीं है बे-ख़ुदी में मेहरबाँ अब तक किसी के हुस्न की होती है मुद्दत से कसक दिल में मगर समझे नहीं ऐ 'राज़' ये राज़-ए-निहाँ अब तक