क़सम है जाने वाले तुझ को अपने हुस्न-ए-कामिल की ज़रा रूदाद-ए-ग़म सुनता भी जा टूटे हुए दिल की ख़ुदारा रहम कर मुझ पर तू ऐ वहशत मिरे दिल की कहाँ पर ले चली मुझ को दिखा कर शक्ल मंज़िल की हमें खोया है क़िस्मत ने हमारी ला के मंज़िल पर न अपना होश था हम को ख़बर थी कुछ न मंज़िल की अजब क्या था उन्हें हालत पे मेरी रहम आ जाता अगर रूदाद-ए-ग़म सुनते मिरे टूटे हुए दिल की नहीं है ताक़त-ए-रफ़्तार लेकिन इस की हसरत है कहाँ पर है मिरी मंज़िल दिखा दे शक्ल मंज़िल की तिरी बज़्म-ए-तमन्ना भी अजब बज़्म-ए-तमन्ना है हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है महफ़िल की गरेबाँ चाक होने पर भी वहशत ना-मुकम्मल है अभी हसरत है मुझ को ऐ जुनूँ तौक़-ओ-सलासिल की मुझे शौक़-ए-शहादत ले चला है आज मक़्तल में इलाही बात रखना क़त्ल-गह में मेरे क़ातिल की न जाने किस के जल्वे 'राज़' मुझ को याद आते हैं ये किस के दर्द की दिल में कसक है ख़ैर हो दिल की