पा के इशारे जोश-ए-नुमू के क़ाफ़िले निकले हैं ख़ुशबू के चार तरफ़ गुलज़ार के अंदर हंगामे हैं रंग-ओ-बू के इंसानी क़द्रों को गँवा कर ख़ुश हैं बहुत शोहरत के भूके रज़्म भी हम से बज़्म भी हम से मालिक हैं हम सैफ़-ओ-सुबू के तारों भरी शब के दामन पर छींटे हैं ये किस के लहू के उर्दू में उर्दू की बुराई करते हैं दुश्मन उर्दू के पंजा-ए-वहशत को हैं सिखाने ऐ 'जर्रार' अंदाज़ रफ़ू के