सबब-ए-दर्द-ए-जिगर याद आया या'नी वो तीर-ए-नज़र याद आया झिलमिलाने लगे पलकों पे नुजूम फिर कोई रश्क-ए-क़मर याद आया अपनी मंज़िल के निशाँ पाते ही मुझ को आग़ाज़-ए-सफ़र याद आया देख कर आइना किस सोच में हो क्या कोई अहल-ए-नज़र याद आया भूलने वाले तड़प उट्ठेगा मैं किसी वक़्त अगर याद आया उन की पाज़ेब उधर गूँज उठी शोर-ए-ज़ंजीर इधर याद आया क्यों ये बिखरा लिए गेसू तुम ने क्या कोई ख़ाक-बसर याद आया एक हालत में बसर हो न सकी शाम को वक़्त-ए-सहर याद आया हिल गया क़ल्ब-ए-दो-आलम 'जर्रार' कौन करता हुआ फ़रियाद आया