पड़ गई आप पर नज़र ही तो है इक ख़ता हो गई बशर ही तो है इतना भारी न डालिए मूबाफ़ बल न खाए कहीं कमर ही तो है मेरी आहों से उन के दिल में असर कभी यूँ भी उड़े ख़बर ही तो है पाँव फैलाए हम ने मरक़द में चलते चलते थके सफ़र ही तो है 'क़द्र' ने क्या ज़बान पाई है लोग कहते हैं ये सहर ही तो है