पढ़ा है हम ने सबक़ हर घड़ी सदाक़त का इसी लिए तो ये हम पर असर है रहमत का मैं सच को झूट की बोतल में बंद कर लूँगा मिरे गले में भी तावीज़ है सियासत का मिरी निगाह भला क्यों न हो मुक़द्दस-तर मैं रोज़ करता हूँ दीदार अपनी जन्नत का मैं बच गया हूँ मिरा नाम ग़ाज़ियों में लिखो इरादा कर के तो निकला था मैं शहादत का जबीन-ए-शौक़ के सज्दों का लुत्फ़ या-अल्लाह वो मरहला भी अजब था तिरी रिफ़ाक़त का अभी तलक है तख़य्युल में नूर की बारिश ख़याल आया था इक दिन तुम्हारी मिदहत का लो आज वक़्त की ठोकर में आ गए हैं 'नवाब' नशा था जिन के दिमाग़ों में बादशाहत का